Thursday, April 9, 2020

Mayke Jab Jaiyyo

वह भी यहीं तो क्या दिन होते हैं जब बच्चों की परीक्षायें हो चुकी होती हैं और परिणामों का इंतज़ार ख़त्म होने के साथ ही मन कहीं उड़ने को आतुर हो उठता है। पिछले 9-10 महीनों की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से थोड़ी निज़ात पाने या यूं कहें कुछ समय के दिल बहलाव के लिए किसी रमणीय स्थल पर सैर-सपाटे की योज़ना तैयार होती है। लेकिन अगर हम दूसरे पहलू से देखें तो हमारा जो मम्मी वर्ग है वह बच्चों को लेकर जब तक अपने ननिहाल नहीं हो आती, तब तक छुट्टियों का मजा ही नहीं आता, है कि नहीं। वैसे, मायके जाने में कोई आपत्ती तो नही है, क्यूँकि मायका मतलब अपना एक हक़ का घर, अपनापन। और उसी अपनेपन की डोर से बंधी हम अर्थात बेटियां खिंची चली आती हैं। लेकिन मायके जाने से पहले अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो फायदेमंद होगा। कौनसी ? आइए जानते हैं।

मायके जब जइयो 
बच्चों की परीक्षाएं हुई नहीं कि मम्मीयों को मायके की याद सताने लगती है, और ऐसा हो भी क्यों नहीं क्योंकि साल भर तो घर-गृहस्ती और बच्चों की पढ़ाई में ही लगे रहते हैं। थोड़े से चेंज की आवश्यकता शिद्दत से महसूस होने लगती है। वैसे तो बदलाव के लिए शहर से बाहर, रमणीय स्थलों पर या पर्यटन के लिए भी जाया जा सकता है, फिर भी मायके गए बिना तो जैसे छुट्टियों का मजा ही अधूरा रह जाता है। बदलाव के लिए, अपनों से मिलने के लिए या सिर्फ छुट्टियां बिताने के लिए ही सही, मायके अवश्य जाइये लेकिन मायके जाने से पहले कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें। 

  • याद रखें आप अगर सिर्फ बदलाव या मिलने के लिए ही जा रहीं हैं, तो सभी के लिए कुछ ना कुछ उपहार आदि ले जाने की परंपरा न डाले। अपने शहर की कुछ खास मिठाई और नमकीन या बच्चों के लिए छोटी-मोटी चीजों तक तो ठीक है लेकिन अपनी इस मिलन यात्रा को भारी-भरकम आर्थिक बोझ बनाने से बचें। मायके से भी किसी तरह के उपहारों की अपेक्षा न रखें। अर्थात, दोनों तरफ पडने वाले आर्थिक बोझ को बचाने का प्रयास करें। 
  • अपने या बच्चों के लिए हर रोज ही कोई अलग, नई डिश या पकवान बने ऐसी अपेक्षा न रखें तो बेहतर होगा। अर्थात मेहमान सी खातिरदारी हो ऐसी उम्मीद न रखें। 
  • आप मायके में हैं इसलिए बस आराम ही करना है, ऐसी धारणा कतई न बनायें। थोड़ा बहुत काम भी करें वर्ना भाभी ही नहीं, माँ को भी ऐसी बेटियों का आना अख़रने लगता है जो सिर्फ आराम ही फरमाती है, अपने बच्चों तक का ध्यान नहीं रखती। 
  • अपने दुख-दर्द, परेशानियों को भी मायके में ही साझा किया जाता है, परन्तु उन्हें बताते समय ध्यान रखें कि कहीं आपकी परेशानीयों या तकलीफों से आपके जाने के बाद भी मायके वाले दुखी और चिंतित ना हो।  वैसे भी माँ जब बेटियों को दुखी देखती है, तब वे स्वयं भी कुछ ज्यादा ही दुखी हो जाती हैं। अतः जहां तक हो सके, माँ के सामने सुखी जीवन चर्या का ही बखान करें। बहुत ही जरूरी हो तो ही परेशानी बताएं। 
  • अपने मायके की यात्रा को निंदक पुराण महागाथा बनने से बचाएं। सामान्यतः देखा गया है कि मायके वाले मिले नहीं कि ससुराल वालों की बुराइयां शुरू हो जाती है।  देखा जाए तो ससुराल तथा मायके वालों को एक दूसरे को जानने समझने का अवसर बहुत ही कम मिलता है। अमूमन, दोनों ही पक्षों का आमना-सामना किसी प्रकार के आयोजनों में ही होता है, जहां रस्मों रिवाजों के बीच व्यस्तता के चलते घनिष्ठता लाने का विशेष प्रयास नहीं होता। अतः ससुराल पक्ष के लोगों की वैसी ही छबि बनेगी जैसी आप बताएंगे। इस बात के मद्देनज़र, यहां शिल्पा के साथ घटित एक घटना का उल्लेख करना उचित होगा। शिल्पा अपनी श्रेष्ठता बताने की दृष्टि से बोल पड़ी कि मेरे ससुराल में तो एक से एक मूर्ख है। बाद में उसकी ही किसी गलती पर उसका भाई बोल पड़ा, लगता है मूर्खों के साथ रहकर तुम भी मूर्ख हो गई हो। अब बताइए, यहां किसे गलत कहेंगे ?
  • याद रखिए, शादी के बाद लड़की का अपना घर उसका ससुराल ही होता है, जहां उसे अपनी पूरी जिंदगी गुजारनी होती है। मायके को कितना भी अपना कहें या माने वहां वह मेहमान ही होती है। 
  • बहुत सी महिलाओं की आदत होती है, दूसरों के काम में मीन मेख निकालना। कुछ तो मायके जाते ही वहां भी सभी के कामों में हस्तक्षेप करने लगती है। यह ठीक नहीं किया, वह वैसा किया आदि। इस तरह की आदत न बनाएं और वैसे भी ढर्रा अगर बिगड़ा हुआ है तो आठ-दस दिनों की टोका टाकी से कुछ सुधारने वाला तो है नहीं, अतः सबके लिए सिरदर्द का सबब न बनें।  
  • मायके जाने पर अप्रत्यक्ष रूप से भी कोई ऐसी बात करने से बचें जो किसी को दुःख पहुंचाएं। जैसे की माँ से यह कहना, जब देखो तब काम करती रहती हो, थोड़ा आराम भी कर लिया करो। ऐसे में भाभी को ऐसा लग सकता है कि आप यह जताना चाहती हैं कि सारा दिन माँ ही काम करती रहती है। हक़ीकत यह है की बुजुर्ग व्यक्तियों का काम किए बिना मन नहीं मानता और दूसरा उन्हें समय भी बहुत लगता है। 
  • लड़कियों को मायके के खर्चों के बारे में भी ज्यादा जांच पड़ताल नहीं करनी चाहिए। जैसे की, क्या घर का सारा खर्च पापा ही करते हैं या भैया भी कुछ देते हैं। यदि भाभी नौकरी करने वाली हो तो उनकी तनख्वाह व खर्चों के बारे में भी पड़ताल न करें।  
  • बच्चों को लेकर भी अक्सर तुलना हो जाती है। इस बात से भी बचना चाहिए। बच्चों को अपने तरीके से एक दूसरे को समझने का मौका देना चाहिए। निश्चित ही, दोनों घरों के वातावरण तथा व्यवहार में अंतर होने से बच्चों में उनके व्यवहार और संस्कारों में भिन्नता तो होगी ही। अतः बच्चों की अच्छी बुरी आदतों को लेकर बहस में नहीं पड़ना चाहिए। 
  • इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाएं कि आपके जाने से उनकी दिनचर्या प्रभावित ना हो।
- डॉ. मोहिनी नेवासकर



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