कन्या
एक दंपत्ती डॉक्टरों से जिरह कर रहे थे। वह गर्भ में पल रही बालिका को इस संसार में लाना नहीं चाहते थे। वह इसके पक्ष में तर्क देते हुए कह रहे थे, कि यह देश लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है। आए दिन चारों ओर से लड़कियों पर अत्याचार, अनाचार और दुराचार की खबरें आती रहती है। अगर हम इस गर्भस्थ बालीका को इस संसार में लाते हैं तो इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? डॉक्टर के पास उनकी इस आशंका का कोई माकूल जवाब नहीं था। और इस देश के कानून और व्यवस्था के बारे में कुछ ना कहना ही बेहतर था।
तभी गर्भस्थ बालिका सोचने लगी कि यदि गर्भ में मेरी जगह किसी बालक का भ्रूण होता तो उस अवस्था में भी क्या यह ऐसा ही सोचते? या फिर उस वक्त यह पूरी तरह निश्चिंत होते कि आने वाला बालक इसी दुराचारी, भ्रष्टाचारी और व्यवस्था की पंगु होती स्थिति में अर्थात विपरीत, कुसंस्कारित वातावरण में सभ्य, शालीन और सुशील रहता।
दूसरा पहलू यह भी है कि यदि मैं डॉक्टर की कृपा से और कानूनी सहायता से इस दुनिया में आ भी जाती हूं, तो यहां वह पहले वाली व्यवस्था नही होगी इसकी क्या ग्यारंटी। उसमें भी तो पालक पहले तो बहुतेरे उपायों द्वारा कन्या को मारने के उपाय करते, किंतु यदि भाग्य से वह बच भी जाती तब यही पालक कन्यादान का पुण्य कमाने की लालसा में तथा बालिका को न संभाल पाने की मजबूरी में बचपन में ही उसका विवाह कर देते। जिसे नाम भी बाल विवाह ही दीया जाता और यह मान लिया जाता कि अब इस छोटी सी बालिका के संरक्षण की जिम्मेदारी दो परिवार मिलकर उठाएंगे तो वह सुरक्षित रहेगी। किंतु इस बीच यदी बालिका की रक्षा का भार उठाने वाला, अग्नि को साक्षी मानकर उसके संरक्षण की शपथ लेने वाला ही इस दुनिया को अलविदा कर जाए तो उसे भी पति की मृत देह के साथ जीवित और स्वस्थ अवस्था में इस संसार को अलविदा करना पड़ता और तब हम उसे सती का नाम देते तथा पुण्यवान, महान आत्मा कहकर ससम्मान इस दुनिया से विदा होने के लिए मानसिक रूप से तैयार करते। उसकी चीखों और चिल्लाहटों को अनसुना करने के लिए ढोल, नगाड़े और बांस बजाते और बाद में उसका मंदिर बनाकर पूजा भी करते।
यदि यही पुरुष सामूहिक रूप से किसी कारणवश मौत के मुंह में जाते, अर्थात एक से अधिक की तादात में उस समय होनेवाले युद्धों में अपने प्राण गंवाते तो यकीन मानिए उन महिलाओं को संगठित होकर शक्ति ग्रहण कर अपनी रक्षा आप करने का मंत्र देने और जिंदगी जीने को कहने के स्थान पर उन्हें सामूहिक रूप से इस संसार को अलविदा करने को कहते जिसे जौहर का नाम दिया जाता तथा उन जगहों को बाद में पर्यटन की जगह के रूप में प्रचारित ही नहीं करते अपितु राष्ट्रीय धरोहर तथा मर्यादा की रक्षा के लिए किए गए बलिदान के रूप में महिमामंडित भी करते।
अब आप इसे अशिक्षित, असभ्य और बर्बर समाज की वास्तविकता से निपटने की क्रूर व्यवस्था कह लो या फिर आधुनिक, शिक्षित, सभ्य और प्रगतिशील समाज की वास्तविकता से मुंह मोडने की लाचार अवस्था की गर्भ में ही लिंग का पता कर उसे बाहर आने से रोकना। मैं (कन्या भ्रूण) इतने सालों से व्यवस्था के बदलाव के प्रति आशान्वित हो बाहर आने की राह देख रही हूं। क्या मुझे वह राह मिल पाएगी, गर्भ में पल रही बालिका बोल पड़ी। क्या है जवाब इसका आपके पास?
- डॉ. मोहिनी नेवासकर
No comments:
Post a Comment